किसी भी मोड़ पे रोका न गुमरही से मुझे कोई गिला भी नहीं अपनी ज़िंदगी से मुझे सभों से मिलता हूँ बेगाना-ए-तलब हो कर न दोस्ती से ग़रज़ है न दुश्मनी से मुझे सफ़र से पहले ज़रूरी है मुद्दआ-ए-सफ़र पता चला ये सितारों की कजरवी से मुझे फ़क़ीर-ए-शहर तो हूँ मैं गदा-ए-राह नहीं करम की भीक न दे ऐसी बे-रुख़ी से मुझे मिरे जिलौ में चलेगा समुंदरों का जलाल न रोक पाएगा कोई शनावरी से मुझे रह-ए-हयात में काँटों ने मेहरबाँ हो कर बचा लिया है अज़ाब-ए-शगुफ़्तगी से मुझे किसी से मिल के बिछड़ने की जब घड़ी आई घड़ी से हो गई नफ़रत उसी घड़ी से मुझे अँधेरी रात में देखा है मशअ'लों का जुलूस डरा दिया है सियासत ने रौशनी से मुझे मिरी अना ने सबक़ दे के ख़ुद-परस्ती का छुड़ा दिया है ज़माने की बंदगी से मुझे फ़रेब-ख़ुर्दा-ए-तहरीक-ए-आदमियत हूँ वफ़ा की आस नहीं 'रम्ज़' आदमी से मुझे