मैं सोचता हूँ कभी ऐसा हो न जाए कहीं कि ख़्वाब आँख में हो आँख सो न जाए कहीं मैं जानता हूँ बहुत रोज़ वो न ठहरेगा मगर इस अर्से में वो ज़हर बो न जाए कहीं जो एक अक्स बनाया था पिछली बारिश ने वो शक्ल अब के से बरसात धो न जाए कहीं उसे ये शिकवा कि मैं ने न पूछा हाल उस का मुझे ये ख़ौफ़ में बोला तो रो न जाए कहीं बढ़ी जो उम्र तो अब तजरबा सताने लगा है डर कि बूढ़ा शजर हम से खो न जाए कहीं बड़ों के फ़ैज़ से हासिल है 'शम्स' को ये कमाल कि उस के साथ जो आ जाए तो न जाए कहीं