किसी दर्द-मंद की हूँ सदा किसी दिल-जले की पुकार हूँ जो बिगड़ गया वो नसीब हूँ जो उजड़ गई वो बहार हूँ कोई मुझ पे फूल चढ़ाए क्यूँ कोई मुझ पे शम्अ' जलाए क्यूँ कोई मेरे पास भी आए क्यूँ कि मैं हसरतों का मज़ार हूँ भला मुझ पे ढाएँ तो ढाएँ क्या सितम अब ज़माने की आँधियाँ मैं बुझा हुआ सा चराग़ हूँ मैं मिटा हुआ सा ग़ुबार हूँ कहूँ क्या है क्या मिरी ज़िंदगी ये है ज़िंदगी कोई ज़िंदगी वो है दुश्मन-ए-दिल-ओ-जाँ मिरा दिल-ओ-जाँ से जिस पे निसार हूँ शब-ओ-रोज़ लब पे है ऐ 'वफ़ा' ये दुआ कि मौत ही दे ख़ुदा जो यही है मेरे नसीब में कि असीर-ए-दाम-ए-बला रहूँ