किसी दिन मुझे भीड़ में तुम मिलोगी है ख़्वाहिश के ले कर तबस्सुम मिलोगी नया प्यार मिलते ही क्यों छोड़ा मुझ को इसी दर्द-ए-फ़ुर्क़त में गुम-सुम मिलोगी निकाली जिन आँखों से तस्वीर मेरी बसाए उन्ही में तलातुम मिलोगी गई तो थीं ख़ामोश रातों सी हो कर सबा जैसी करती तकल्लुम मिलोगी ग़ज़ल हिज्र की बर-ज़बाँ आई 'मूसा' ये ख़्वाहिश है ले कर तबस्सुम मिलोगी