किसी हसीन पे नासेह को प्यार आए तो हमें बुख़ार है उस को बुख़ार आए तो उठाए इश्क़ का काँधे पे बार आए तो क़ुली बने कि बने हैं कहार आए तो बला की तरह न उश्शाक़ सब चिमट जाएँ ज़बान-ए-शोख़ पे हाँ एक बार आए तो जो सिन ढला है तो हो वक़्फ़-ए-सुर्ख़ी-ओ-पाउडर ख़िज़ाँ के दौर में फ़स्ल-ए-बहार आए तो वो एक हम हैं कि हर साँस है वफ़ा-आमेज़ वो एक तू है जिसे ए'तिबार आए तो जवानी आई है नाज़-ओ-अदा अयाँ हो जाएँ है दम पे हुस्न की खिचड़ी अचार आए तो सुना है गोर-ए-ग़रीबाँ में अस्पताल नहीं अगर किसी को लहद में बुख़ार आए तो