शादी न करो झगड़ों का सामाँ न रहेगा साहिल पे कभी ख़तरा-ए-तूफ़ाँ न रहेगा दुनिया को फ़ना है कोई इंसाँ न रहेगा लेकिन नहीं सुनते हैं कि शैताँ न रहेगा फ़ाक़े हों तो उल्फ़त का भी उनवाँ न रहेगा जब हो ग़म-ए-जानाँ ग़म-ए-दौराँ न रहेगा राशन की क़सम गर यही हालत रही कुछ दिन कोई भी किसी के यहाँ मेहमाँ न रहेगा बद-मआ'श ये कहते थे जो आज़ाद हुआ हिन्द होगी न सज़ा एक भी ज़िंदाँ न रहेगा बनती यूँही तारों से जो चुनता रहा काँटे सहरा में कोई ख़ार-ए-मुग़ीलाँ न रहेगा बुलवाया रफ़ू-गर को अभी चाक की है फ़िक्र तब आएगा जब पास गरेबाँ न रहेगा सिन ढलते ही सब बाज़ के पिंजरों से उड़ेंगे लमछर न रहेगा कोई टुय्याँ न रहेगा मर्दों के थे मरघट जहाँ हैं ज़िंदों के बंगले सुनते हैं कोई गोर-ए-ग़रीबाँ न रहेगा हाँ पोपला मुँह आशिक़-ए-नाशाद को देखो फिर ज़ह्न में भी चित कोई टुय्याँ न रहेगा