किसी हिज्र का किसी क़ुर्ब का कोई सिलसिला जो गुज़र गया मिरी मंज़िलों की नवेद था वही रास्ता जो गुज़र गया किसे वक़्त था जिसे देख कर कोई सोचता कोई पूछता वही एक छोटा सा सानिहा पस-ए-वाक़ि'आ जो गुज़र गया वही अस्ल मत्न-ए-हयात था वही लफ़्ज़ रूह-ए-सबात था किसी सरसरी सी निगाह से मिरा हाशिया जो गुज़र गया जहाँ रहबरी के कमाल में कई नाम थे मिरे सल्फ़ के मैं उसी का गर्द-ओ-ग़ुबार हूँ वही क़ाफ़िला जो गुज़र गया न बसारतों को जगा सका न समा’अतों में समा सका किसी ज़िंदगी का मआल था वही हादिसा जो गुज़र गया जो खिंचा था जाँ के ख़ुतूत से जो मुहीत था मिरी ज़ात पर वो ख़याल का मिरी सोच का कोई ज़ाविया जो गुज़र गया