किसी ख़ुशी का मिरे दिल को ए'तिबार न दे जो ए'तिबार अगर दे तो बे-शुमार न दे रसन हो रूह को और पाँव की बने ज़ंजीर किसी निगाह को अब मुझ पे इख़्तियार न दे अमाँ में आ के भी जिस की मैं बे-अमान रहूँ किसी भी ऐसी नज़र का मुझे हिसार न दे मैं तेरे फ़न की गो तख़्लीक़-ए-बे-बहा ही सही दे इफ़्तिख़ार मुझे ज़ो'म-ए-इफ़्तिख़ार न दे भला बहुत है मोहब्बत में दर्द-ए-मायूसी ख़ुदा किसी को कभी ज़ख़्म-ए-इंतिज़ार न दे