किसी का घर किसी का दिल जला है मोहब्बत में तो ये होता रहा है अँधेरों ने भी ऐसा खेल खेला उजाला भी अंधेरा हो गया है वो अपना मानते हैं फिर ये क्या है हमारे बीच ये कैसी ख़ला है ज़रा उस की सियासत भी तो देखो वफ़ा के नाम पर करता जफ़ा है हरा कैसे सकेगा उस को कोई वो जिस की साएबाँ माँ की दवा है अदब जिस ने किया अपने बड़ों का वो छोटा हो के भी कितना बड़ा है कोई 'सलमान' क्या जानेगा उस को झुकी पलकों में उन की इक नशा है