किसी क़ातिल से न तलवार से डर लगता है आज क्या बात है दरबार से डर लगता है ख़ुद को ओढ़े हुए बैठा हूँ किसी गोशे में हर तरफ़ शोरिश-ए-बिसयार से डर लगता है सोचता हूँ कि कहाँ टेक लगा कर बैठूँ मुझ को ख़ुद अपनी ही दीवार से डर लगता है टूट जाए न किसी आन तसलसुल उस का क्यूँ मुझे साँस की तकरार से डर लगता है मैं ने क़ातिल का अदा रोल किया है 'हमदम' क्यूँ मुझे अपने ही किरदार से डर लगता है