किसी के आँख दिखाने से कुछ नहीं होगा हम अहल-ए-हक़ हैं डराने से कुछ नहीं होगा बनेगी बात जभी हम भी एक हो जाएँ कि सिर्फ़ शोर मचाने से कुछ नहीं होगा मैं आफ़्ताब हूँ सुन लो दिया नहीं कोई हवाओ ज़ोर लगाने से कुछ नहीं होगा तुम्हें गुनाह की अपने सज़ा मिलेगी ज़रूर तुम्हारे गंगा नहाने से कुछ नहीं होगा अमल भी शर्त है इतना ज़रूर याद रहे फ़क़त दुआएँ कराने से कुछ नहीं होगा उठो मुक़ाबला हालात का करो 'ताबिश' कि बैठे अश्क बहाने से कुछ नहीं होगा