किसी के हिज्र में क़ुर्बान रात करते हुए कटा है वक़्त सितारों से बात करते हुए वो क्या डरेगा नई वारदात करते हुए हमें गुज़रना है ख़ुद एहतियात करते हुए किसी के ख़्वाब उठाए किसी की आँखों ने किसी को देखा है पलकों को हाथ करते हुए ये राह-ए-इश्क़ है इस में बला की फिसलन है सँभल सँभल के चलो एहतियात करते हुए बताऊँ क्या कि मैं पहुँचा हूँ किस तरह तुम तक ना-मुम्किनात को भी मुम्किनात करते हुए वो एक चाँद कि जिस को ज़मीं पे लाना है निकल रहा हूँ मैं गलियों में रात करते हुए मुबाहिसों से बहुत तंग आ गया है 'पवन' सुना दे अब तू सज़ा इल्तिफ़ात करते हुए