सुना है तेरी ज़माने पे हुक्मरानी है मगर न भूल कि दो दिन की ज़िंदगानी है चमन की सारी बहारों के तुम ही मालिक हो फ़क़त हमारे मुक़द्दर में बाग़बानी है मैं कैसे छोड़ दूँ घर को कमाई की ख़ातिर मैं इक ग़रीब हूँ बिटिया मिरी सियानी है हिसार-ए-बेहिसी हरगिज़ न तोड़ पाएँगे वो जिन को दोस्तो शम-ए-अमल बुझानी है बहाओ खुल के ग़रीबों का बे-कसों का लहू नसीब से तुम्हें हासिल ज़र-ओ-जवानी है ख़ुदा की राह पे चल कर दिखाइए 'ग़ाज़ी' जो कामयाब तुम्हें ज़िंदगी बनानी है