किसी के हुस्न-ओ-अदा पर जो तब्सिरा कीजे फ़लक-असास इरादों से इब्तिदा कीजे कोई तो हद हो मुक़र्रर सितमगरी की तिरी अगरचे सब्र जो कीजे भी ता-कुजा कीजे क़रार दिल का निहाँ है इसी में जानानाँ हमारी सम्त भी चश्म-ए-सितम ज़रा कीजे असीर-ए-पंजा-ए-मिज़्गाँ हैं जाने कब से हम हमारे दर्द जिगर का मु'आलजा कीजे मुझे ख़बर है मिरी दस्तरस नहीं उस तक मगर उसे ही ये दिल चाहता है क्या कीजे ये टूट कर जो बिखरने की चाह रखता है कभी तो पूरी तमन्ना-ए-आइना कीजे नया नहीं है दिलों का ये टूटना 'आरिफ़' मैं कह रहा हूँ ज़रा सा तो हौसला कीजे