किसी की आँख में ख़ुद को तलाश करना है फिर उस के ब'अद हमें आइनों से डरना है फ़लक की बंद गली के फ़क़ीर हैं तारे! कि घूम फिर के यहीं से उन्हें गुज़रना है जो ज़िंदगी थी मिरी जान! तेरे साथ गई बस अब तो उम्र के नक़्शे में वक़्त भरना है जो तुम चलो तो अभी दो क़दम में कट जाए जो फ़ासला मुझे सदियों में पार करना है तो क्यूँ न आज यहीं पर क़याम हो जाए कि शब क़रीब है आख़िर कहीं ठहरना है वो मेरा सैल-ए-तलब हो कि तेरी रानाई चढ़ा है जो भी समुंदर उसे उतरना है सहर हुई तो सितारों ने मूँद लीं आँखें वो क्या करें कि जिन्हें इंतिज़ार करना है ये ख़्वाब है कि हक़ीक़त ख़बर नहीं 'अमजद' मगर है जीना यहीं पर यहीं पे मरना है