मत पूछ कि इस पैकर-ए-ख़ुश-रंग में क्या है इक रेत का टीला पस-ए-दीवार-ए-क़बा है ये ख़ल्क़ इबारत है लब-ए-गोया की मुहताज देखें तो फ़क़त दाग़ है बोलें तो सदा है आती है सिसकने की दिल-ए-दश्त से आवाज़ शायद कि रग-ओ-पै में कोई आबला-पा है है बोझ तन-ए-ख़स्ता का दीवार-ए-नफ़स पर गोया कि मिरे घर का सुतूँ मौज-ए-हवा है कुछ वहशत-ए-इज़हार लहू शाख़ पे लाई कुछ रास गुल-ए-ज़ख़्म को ये आब-ओ-हवा है अब और कोई नुत्क़-ओ-ज़बाँ हों तो कहूँ कुछ इस ख़ाना-ए-दर-बंद में क्या हश्र बपा है अब इज्ज़-ए-सफ़र की भी मलामत है मिरे सर हर राह मिरे सामने आग़ोश-कुशा है फिर तीरगी-ए-शब में नज़र आई नई शक्ल अब देख कि किस ख़्वाब का दर आँख पे वा है टकरा के सियाही से पलट जाती है सूरत 'शाहिद' दिल-ए-आईना में दीवार सी क्या है