किसी की आँख से आँसू टपक रहे होंगे तमाम शहर में जुगनू चमक रहे होंगे छुपा के रक्खे हैं कपड़ों के बीच में उस ने मिरे ख़ुतूत यक़ीनन महक रहे होंगे खिली है धूप कई दिन के बा'द आँगन में फिर अलगनी पे दुपट्टे लटक रहे होंगे वो छत पे बाल सुखाने को आ गई होगी न जाने अब कहाँ बादल भटक रहे होंगे मिरे जलाए हुए सुर्ख़ सुर्ख़ अंगारे तुम्हारे होंटों पे अब तक दहक रहे होंगे