कोई रुत्बा तो कोई नाम-नसब पूछता है अब जहाँ में कोई किरदार का कब पूछता है तू ने किस दर्जा निभाया है परस्तिश का निज़ाम चाहे पूछे न कभी कोई वो रब पूछता है छीन लेता है वो पहले मिरी ख़ुशियों की वज्ह और फिर मुझ से मिरे ग़म का सबब पूछता है सिसकियाँ घोल के अश्कों को निगलने का हुनर मानो मत मानो हर इक जश्न-ए-तरब पूछता है वो जवाबों में भले दे न सके कोई जवाब पर सवालों पे सवालात ग़ज़ब पूछता है सारी दुनिया की सुनाता है मुझे मेरे सिवा और फिर हाल मिरा छोड़ के सब पूछता है हूँ वो लाचार सितम जिस को दुआएँ ढूँडें हूँ वो बीमार मरज़ जिस को मतब पूछता है पूछ लेता है दिल-ओ-ज़ेहन की सारी बातें पूछने वाली मगर बात वो कब पूछता है पास-ए-ग़ैरत है न 'नायाब' अना का है लिहाज़ चल निकलता हूँ मिरा नाम वो जब पूछता है