किसी की बे-रुख़ी है और मैं हूँ मआल-ए-आशिक़ी है और मैं हूँ फ़लक ने फिर नए फ़ित्ने जगाए कमाल-ए-दुश्मनी है और मैं हूँ जिगर के दाग़ हैं शम-ए-फ़रोज़ाँ हर इक सू रौशनी है और मैं हूँ ख़ुशी का बाब मुझ को ढूँढता है किताब-ए-ज़िंदगी है और मैं हूँ मता-ए-दिल लुटाए जा रहा हूँ मिरी दरिया-दिली है और मैं हूँ था कल तक रौनक़-ए-बज़्म-ए-हसीनाँ मगर अब बेबसी है और मैं हूँ सजे 'आज़ाद' कैसे बज़्म-ए-हस्ती यही गर ज़िंदगी है और मैं हूँ