किसी की बेवफ़ाई से किसी को ठेस लगती है यक़ीनन ज़िंदगी से ज़िंदगी को ठेस लगती है हमारा क्या है हम इक जाम ही पर सब्र कर लेंगे मगर साक़ी तिरी दरिया-दिली को ठेस लगती है मैं दाग़-ए-दिल से दुनिया को मुनव्वर कर तो सकता हूँ मगर ऐ चाँद तेरी चाँदनी को ठेस लगती है अजब दस्तूर-ए-दुनिया है कि जब आँसू बहाता हूँ कोई मसरूर होता है किसी को ठेस लगती है जो वाक़िफ़ ही नहीं ईसार के पाकीज़ा जज़्बे से उसी की दोस्ती से दोस्ती को ठेस लगती है इसी बाइ'स मैं आँसू पी गया हूँ बारहा ऐ दिल मिरे रोने से फूलों की हँसी को ठेस लगती है भटकता फिर रहा हो दर-ब-दर क्या ये भी सोचा है मिरा क्या तेरी बंदा-परवरी को ठेस लगती है ब-वक़्त-ए-पुर्सिश-ए-बीमार-ए-ग़म रोना नहीं अच्छा तुम्हारे आँसुओं से दिल-दही को ठेस लगती है कभी ऐ 'नूर' जल्वे बाइस-ए-तौक़ीर होते हैं कभी जलवोें ही से जल्वागरी को ठेस लगती है