किसी की चाह में दिल को जलाना ठीक है क्या ख़ुद अपने आप को यूँ आज़माना ठीक है क्या शिकार करते हैं अब लोग एक तीर से दो कहीं निगाह कहीं पर निशाना ठीक है क्या बहुत सी बातों को दिल में भी रखना पड़ता है हर एक बात हर इक को बताना ठीक है किया गुलाब लब तो बदन चाँद आतिशीं रुख़्सार नज़र के सामने इतना ख़ज़ाना ठीक है क्या तमाम शब मिरी आँखों का ख़्वाब रहते हो तमाम रात किसी को जगाना ठीक है क्या कभी बड़ों की भी बातों का मान रक्खो 'शम्स' हर एक बात में अपनी चलाना ठीक है क्या