किसी की चश्म-ए-गुरेज़ाँ में जल बुझे हम लोग अजब मशक़्क़त-ए-हिज्राँ में जल बुझे हम लोग हम अपने अक्स को आईना करने वाले थे पे एक लम्हा-ए-हैराँ में जल बुझे हम लोग संभाल पाएगा फिर कौन ख़्वाब का वरसा इसी ख़याल-ए-परेशाँ में जल बुझे हम लोग जो आँख से नहीं टपके इन आँसुओं के साथ ख़ुद अपने ख़ेमा-ए-मिज़्गाँ में जल बुझे हम लोग हमारे ख़ून की क़ीमत पे जो ख़रीदी गई उसी बहार-ए-गुलिस्ताँ में जल बुझे हम लोग कहाँ तलक कि उठाते अज़ाब-ए-तन्हाई अकेले हुजला-ए-वीराँ में जल बुझे हम लोग सज़ा-ए-मौत से बद-तर है आगही की सज़ा शुऊर-ए-हर्फ़ के ज़िंदाँ में जल बुझे हम लोग हमें किसी का बहुत इंतिज़ार था 'रूही' सो बन के शम्अ शबिस्ताँ में जल बुझे हम लोग