नया अब सिलसिला जोड़ा न जाए By Ghazal << किसी की चश्म-ए-गुरेज़ाँ म... रखते हैं मेरे अश्क से ये ... >> नया अब सिलसिला जोड़ा न जाए पुरानों को मगर तोड़ा न जाए मुझे जो छोड़ जाना चाहता है अगर जाए तो फिर थोड़ा न जाए बहुत नुक़सान करती है ख़ुदी का अना का रुख़ अगर मोड़ा न जाए तमन्ना आसमानों के सफ़र की मगर आँगन कि बस छोड़ा न जाए Share on: