किसी की जब से जफ़ाओं का सिलसिला न रहा दिल-ए-हज़ीं में मोहब्बत का हौसला न रहा दयार-ए-हुस्न में मिलती नहीं है जिंस-ए-वफ़ा दिल-ए-ग़रीब का अब उन से वास्ता न रहा हवा-ए-यास ने शम-ए-उमीद गुल कर दी किसी से अब कोई शिकवा भी बरमला न रहा मिरी नज़र का तक़ाज़ा भला वो क्या समझें कि हुस्न-ओ-इश्क़ में पहला सा राब्ता न रहा उजड़ गया है कुछ इस तरह अब दयार-ए-वफ़ा कहीं भी मेरी तमन्ना का नक़्श-ए-पा न रहा ख़ुदी न हो सकी मिन्नत-कश-ए-नशात-ए-वफ़ा हमारा हाथ कभी माइल-ए-दुआ न रहा 'कलीम' कौन मुसीबत में किस का होता है दयार-ए-दोस्त में कोई भी आश्ना न रहा