किसी की ख़ातिर हो फूल सावन मिरे लिए तो बबूल सावन न जाने कब था ये पानी पानी है इस बरस धूल धूल सावन बरहना पेड़ों से जाते जाते ख़िराज कर ले वसूल सावन तू बारह बरसों के बाद आता दुआ जो होती क़ुबूल सावन ज़रूर आयेगा कोई कल तक दे ख़ुद को थोड़ा सा तूल सावन उसे तो फाँसी पे झूलना है तू अपने झूले पे झूल सावन 'नियाज़ी' दिल हो कि पेड़ सब को गया है कर के मलूल सावन