किसी की याद आफ़त ढा रही है तबीअ'त ख़ुद-बख़ुद घबरा रही है चला हूँ उस नज़र की जुस्तुजू में जहाँ दिल है वो मंज़िल आ रही है मोहब्बत को नहीं समझी है अब तक मगर दुनिया हमें समझा रही है यही है क्या मोहब्बत का ज़माना ज़माने पर उदासी छा रही है उन्हें जी भर के अब देखेंगे 'शाहिद' ये सुनते हैं क़यामत आ रही है