किसी को भूल के भी अपना राज़-दाँ न बना जो तेरा दोस्त है उस को अदू-ए-जाँ न बना है मुख़्तसर सा फ़साना हयात-ए-दो-रोज़ा तू रंज-ओ-ग़म की तवील एक दास्ताँ न बना ये ख़ाक-दाँ है हर इक चीज़ है यहाँ पामाल तसर्रुफ़ात-ए-मह-ओ-ख़ुर से आसमाँ न बना जो दार-ओ-गीर में अम्न-ओ-अमाँ की ख़्वाहिश है तू आरज़ू-ए-नवादिर को मेहमाँ न बना उड़ा मज़ाक़ न तहज़ीब और तमद्दुन का ख़िरद को बेहुदा-गो दिल को बे-इनाँ न बना कुछ एहतिराम तो लाज़िम है अह्द-ए-पीरी का नज़र-फ़रोश न हो हिर्स को जवाँ न बना