किसी को देखते क्यूँ आह रोते जो बस चलता तो हम पैदा न होते वो अश्क ऐ दर्द-ए-दिल आँखों में होते जो दाग़-ए-मासियत दामन से धोते सहर होने को आई रोते रोते कहीं वो आस्ताँ मिलता तो सोते झुकी जाती हैं आँखें बार-ए-ग़म से किसी आग़ोश में सर रख के सोते नज़र देखा किए उन की हमेशा यही हसरत रही हम जान खोते 'जिगर' हम हैं तो ख़ालिक़ भी है कोई न होता कुछ अगर हम ही न होते