तू अपने पिंदार की ख़बर ले कि रुख़ हवा का बदल रहा है तिरी नज़र से बहकने वाला फ़रेब खा कर सँभल रहा है यही है दस्तूर-ए-शहर-ए-हस्ती कि जो नया है वही पुराना हयात अंगड़ाई ले रही है ज़माना करवट बदल रहा है रह-ए-तलब में जुनूँ ने अक्सर शुऊर को आईना दिखाया जिसे था उज़्र-ए-शिकस्ता-पाई वो अब सितारों पे चल रहा है हमें ये ताने न दो कि हम ने ज़माना-साज़ी के गुर न सीखे कि रफ़्ता रफ़्ता मिज़ाज-ए-दुनिया हमारे साँचे में ढल रहा है तिरी अदाओं की सादगी में किसी को महसूस भी न होगा अभी क़यामत का इक करिश्मा हया के दामन में पल रहा है किसी में हिम्मत न थी कि बढ़ कर जुनूँ की ज़ंजीर थाम लेता ख़िरद की बस्ती में है अँधेरा चराग़ सहरा में जल रहा है हज़ार शेवे थे गुफ़्तुगू के हज़ार अंदाज़ थे सुख़न के मगर ब-ईमा-ए-दिल 'फ़रीदी' फ़िदा-ए-रंग-ए-ग़ज़ल रहा है