किसी को फिर उसे पाने की ज़िद है हमारे दरमियाँ आने की ज़िद है मिरी चाहत है उस को रोक लेना मगर वो है कि बस जाने की ज़िद है दयार-ए-शाम से आगे निकल कर मोहब्बत के अज़ा-ख़ाने की ज़िद है शुऊर-ए-ग़म वहाँ पहुँचा कि अब तो ख़ुशी को मर्सिया-ख़ाने की ज़िद है किसी की प्यास ज़िंदा जावेदाँ है किसी को फिर से मर जाने की ज़िद है फ़ुरात-ए-जिस्म से खेमें हटा कर अमीर-ए-शाम के आने की ज़िद है