किसी को हुस्न किसी को अदा नहीं देता कमाल सब को ख़ुदा एक सा नहीं देता अजीब शख़्स है भटके हुए मुसाफ़िर को पता तो देता है पर रास्ता नहीं देता ये सब हमारे ही कमाल का नतीजा है ख़ुदा किसी को कभी ख़ुद सज़ा नहीं देता उसे किसी भी वसीले की क्या ज़रूरत है वो हाल-ए-दिल मुझे ख़ुद क्यूँ बता नहीं देता ये बद-गुमानियाँ अच्छी नहीं किसी के लिए तू बद-दुआ' भी न दे गर दुआ नहीं देता ये दौर दौर-ए-मोबाइल है अब यहाँ इंसाँ तमाशा देखता है आसरा नहीं देता ये 'मेहरबान' भी हिजरत क़ुबूल कर लेता वो मुझ को अपना अगर वास्ता नहीं देता