मैं हूँ तिरा या तू है मिरा कुछ पता नहीं इतना ही बस मुझे है पता कुछ पता नहीं बेहतर यही है सब की दुआएँ समेट लो कब आए काम किस की दुआ कुछ पता नहीं प्यासी है मेरे दिल की ज़मीं ये ख़बर तो है बरसी कहाँ कहाँ पे घटा कुछ पता नहीं जलवोें में हुस्न-ए-यार के गुम हो गए थे सब कब कारवान-ए-शौक़ लुटा कुछ पता नहीं इतना तो मुझ को याद है मैं उस के साथ था कब मैं हुआ हूँ ख़ुद से जुदा कुछ पता नहीं सब लोग ढूँडने में लगे हैं यहाँ वहाँ रहता है सब के दिल में ख़ुदा कुछ पता नहीं रहता हूँ फिर मैं उस के तआ'क़ुब में देर तक देता है कौन मुझ को सदा कुछ पता नहीं शोहरत के आसमाँ पे चमकता था जो कभी सूरज कहाँ ग़ुरूब हुआ कुछ पता नहीं 'अशहर' असीर मैं था ग़म-ए-रोज़गार का कब हो गया बदन से रिहा कुछ पता नहीं