किसी को क्या बताइए कि बस दो-चार हो गए हमीं हवा के मुँह पे थे हमीं शिकार हो गए यहाँ जो दिल में दाग़ था वही तो इक चराग़ था वो रात ऐसा गुल हुआ कि शर्मसार हो गए मुझे तो एक उम्र से पड़ी है अपनी जान की अभी जो साहिलों पे थे किधर से पार हो गए अज़ीम क्यों न जाँ से हो शिकस्त-ए-आइना मुझे वहाँ तो एक अक्स था यहाँ हज़ार हो गए