किसी को लाख अलम हो ज़रा मलाल नहीं कोई मरे कि जिए कुछ उन्हें ख़याल नहीं ये जानता हूँ मगर क्या करूँ तबीअ'त को कि मय हराम है ऐ वाइज़ो हलाल नहीं अबस ग़ुरूर है मँगवा के आइना देखो वो रंग-ओ-रूप नहीं अब वो सिन ओ साल नहीं हुज़ूर आप जो होते तो कोई क्यूँ बनता ये ख़ूबी आप की है ग़ैर की मजाल नहीं इधर तो देखो हमें दो ही दिन में भूल गए ये बे-मुरव्वती अल्लाह कुछ ख़याल नहीं बहार-ए-हुस्न ये दो दिन की चाँदनी है हुज़ूर जो बात अब की बरस है वो पार-साल नहीं हज़र न कीजिए मिलने से ख़ाकसारों के दुआ तो है जो फ़क़ीरों के पास माल नहीं किसी ने जा के बुराई कही जो 'जौहर' की कहा ये झूट है उस की तो ये मजाल नहीं