मुझ से आशिक़ के तईं मार के क्या पावेगा मुफ़्त बदनामी तुझे होवेगी पछतावेगा जो तिरा आशिक़-ए-रफ़्तार है जूँ नक़्श-ए-क़दम तेरे कूचे के तईं छोड़ कहाँ जावेगा ग़ैर के कहने पर ऐ यार न कहियो हरगिज़ ये समझ रखियो वो शैतान है बहकावेगा दहर में तेरे फ़रेबों से ऐ शोख़ अय्यार कम कोई होगा न दिल जिस का दग़ा पावेगा यार को तर्ज़-ए-जफ़ा से नहीं रखने का बाज़ नासेहा हर घड़ी मुझ को ही तो समझावेगा आश्नाई न 'जहाँदार' से तोड़ ऐ प्यारे ऐसा आशिक़ न जहाँ में तू कोई पावेगा