किसी मंज़र में तुझ बिन दिलकशी पाई नहीं जाती कि महफ़िल में भी रह कर मेरी तन्हाई नहीं जाती जुदा सब से वो होते हैं मोहब्बत जिन को होती है ये हर इंसान के दिल में कभी पाई नहीं जाती ग़मों को बाँट लें इक दिन चले आओ क़रार आए तबीअ'त अपनी तन्हा हम से बहलाई नहीं जाती ख़ुदा से रब्त है जिन का मोहब्बत काम है उन का सिफ़त उस की सियह-कारों में तो पाई नहीं जाती 'अना' मेरी ज़रूरत वो 'अना' मेरी मोहब्बत वो ब-जुज़ इस के मिरी जाँ में तो जाँ पाई नहीं जाती