जो गया बहर-ए-तग़ाफ़ुल में भँवर तक पहुँचा डूब कर इल्म के दरिया में गुहर तक पहुँचा ये जहाँ एक मुकाफ़ात-ए-अमल है जिस ने जड़ को सींचा वही फलदार शजर तक पहुँचा कर के बर्बाद ज़मीं हज़रत-ए-इंसाँ देखो अब सुकूनत के लिए अर्ज़-ए-क़मर तक पहुँचा पास आती न 'अना' तेरे कहाँ जाती जब उस का हर रस्ता तिरी राहगुज़र तक पहुँचा