किसी नश्शे से बेशतर तो न था रिश्ता-ए-ग़म भी मो'तबर तो न था मेरे अंजाम उन्हें फ़रेब न दे कम-बसर था मैं कम-नज़र तो न था कम तो पहले भी थे न अहल-ए-जुनूँ लेकिन अब तक जुनूँ हुनर तो न था अपनी हर ख़ुद-सुपुर्दगी की क़सम मैं जहाँ था वो मेरा घर तो न था हम थे राहें तराशने के लिए शामिल इस फ़र्ज़ में सफ़र तो न था साए लोगों के सर पे किस ने किए दूर तक एक भी शजर तो न था ख़ाक पर गिर के मिट गया आख़िर अश्क फिर अश्क था गुहर तो न था वादी-ए-मर्ग क्यों अदम ठहरी ज़िंदगी से वहाँ मफ़र तो न था वक़्त की बात है मियाँ 'हैरत' दिल लगाने में ऐसा डर तो न था