किसी ने तेरी सूरत देख ली है यही समझो क़यामत देख ली है अभी अंजाम-ए-दिल मा'लूम क्या है अजी तुम ने तो आफ़त देख ली है कि ईज़ा हिज्र की देखी कहाँ थी फ़क़त तेरी बदौलत देख ली है चुराता है वो काफ़िर आँख मुझ से निगाह-ए-चश्म-ए-हसरत देख ली है शराफ़त आज हम ने तर्क कर दी ज़माने की शराफ़त देख ली है ज़रा शिकवा किया था आज उन से अरे उल्टी नदामत देख ली है सँभल जाओ मियाँ 'ज़ुहैब' तुम भी तुम्हारी सब ने आदत देख ली है