किसी परिंदे ने उड़ने का मन बनाया है वो कोई और नहीं मेरा ही तो साया है ज़मीं की मुट्ठी में जैसे हो आसमान कोई ग़ज़ब का रेशमी एहसास कोई लाया है गुलों में शोख़ गुलाबी तुम्हीं ने रंग भरे चले भी आओ के गुलशन ने अब बुलाया है ये मेरा गाँव हर इक रोज़ यूँ दमकने लगा के जुगनुओं ने यहाँ आशियाँ बनाया है नए से ख़्वाब चुरा लूँ हसीन लम्हों से यूँ शबनमी सी किसी रात ने सुलाया है भरा भरा सा ही रहता है ये मिरा मन अब मिज़ाज वक़्त ने तुझ से ये ख़ूब पाया है मिलो कभी भी जो फ़ुर्सत में तो ये पूछेंगे यूँ मेरे चाँद को मुझ से ही क्यूँ चुराया है