किसी सूखे हुए शजर सा हूँ एक लम्हे में उम्र भर सा हूँ तुम हँसो और मुस्कुराऊँ मैं शम्स तुम हो तो मैं क़मर सा हूँ कोई मुझ में नज़र नहीं आता एक वीरान रहगुज़र सा हूँ वक़्त इक झील सा हुआ मुझ में कोई ठहरा हुआ सा अर्सा हूँ तुझमें कितनी नमी चली आई जब से तेरी ज़मीं पे बरसा हूँ तुम मिरी ज़िंदगी के मालिक 'अर्श' और मैं ज़िंदगी को तरसा हूँ