मिरी वफ़ा की मुकम्मल तू दास्ताँ कर दे जहाँ पे आग नहीं है वहाँ धुआँ कर दे कहीं से कोई तमन्ना दुआ में आ न सके मिरे ख़ुदा तू मिरे दिल को बे-ज़बाँ कर दे वो जिस के लम्स से पत्थर भी रूह पा जाए उस एक शख़्स को मुझ पर भी मेहरबाँ कर दे बहुत सुना है तेरे मो'जज़ों के बारे में मिरे भी ज़ख़्म-ए-जिगर को तू कहकशाँ कर दे मैं अपने दिल की हर एक बात उस से कह दूँगा सुने तो सुनता रहे वो कहे तो हाँ कर दे यहाँ पे कुछ न हो बिखरी हुई सदा के सिवा मिरे वजूद को उजड़ा हुआ मकाँ कर दे मैं अपनी क़ब्र में ज़िंदा पड़ा हुआ हूँ 'अर्श' अलग अलग तो कोई मेरे जिस्म-ओ-जाँ कर दे