किसी सूरत कमी होती नहीं सोज़-ए-निहानी में मिरी दुनिया बही जाती है अश्कों की रवानी में नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ ऐ बाग़बाँ ये बुलबुलें क्यों हैं बहार आई है कैसी तेरे दौर-ए-बाग़बानी में ख़िरद वालो इधर आओ यहाँ बैठो मुझे देखो कि कैसा मुतमइन हूँ मैं जुनूँ की हुक्मरानी में मिरा ख़ून-ए-तमन्ना ख़ून-ए-दिल ख़ून-ए-वफ़ा ले कर जो रंग-आमेज़ियाँ चाहो करो अपनी कहानी में तपिश से दिल की लौ देने लगे आँसू सर-ए-मिज़्गाँ तमाशा देख लो आकर लगी है आग पानी में अभी कुछ फीकी फीकी सी है रूदाद-ए-ग़म-ए-जानाँ वो सुन लेंगे तो जान आ जाएगी पूरी कहानी में कहाँ का हुस्न कैसा इश्क़ इतना याद है मुझ को कि इक उलझा हुआ सा ख़्वाब देखा था जवानी में न जाने क्यों मुझे वो अपना दीवाना समझ बैठे जब उन का नाम तक आया न था मेरी कहानी में