सुन के भी मेरी सदा क्या करता वो तो पत्थर है वफ़ा क्या करता वक़्त की चीख़ पे आँखें न खुलीं सर्द एहसास भला क्या करता हर क़दम पर थी हवा की यूरिश एक तन्हा सा दिया क्या करता मुझ से क़ुर्बत ही नहीं थी उस को पूछ कर हाल मिरा क्या करता जिस को जीने की तमन्ना ही न थी ज़िंदगी ले के बता क्या करता नाव साहिल ही पे डूबी है 'अलीम' था मुक़द्दर में लिखा क्या करता