किसी ट्रेन के नीचे वो कट गया होता ग़ुबार-ए-राह-ए-तिलिस्मात छट गया होता चलो ये अच्छा कि चंदन बदन से दूर रहे मैं साँप बन के कमर से लिपट गया होता किसी के हिज्र में इतनी घुटन से बेहतर था हवा में सूरत-ए-ग़ुबारा फट गया होता हुआ कि ढेर सी अशिया से भर गया दामन ऐ काश ज़र्रा-ए-नेकी भी अट गया होता ज़बान आती तो उस्लूब कोई गढ़ लेता उसे पटाना नहीं था वो पट गया होता