क़िस्मत की बात कर न मुक़द्दर की बात कर हुस्न-ए-अमल की हुस्न-ए-तदब्बुर की बात कर कर अपने घर की बात तो औक़ात अपनी देख दारा की बात कर न सिकंदर की बात कर क्या ग़म जो माल-ओ-ज़र से नहीं फ़ैज़याब तू शिकवा न कर किसी से मुक़द्दर की बात कर जो कुछ मिला है तुझ को मुक़द्दर की देन है अक़्ल-ओ-हुनर न हुस्न-ए-तदब्बुर की बात कर शाइ'र है अगर शे'र की क़ीमत न कर वसूल अपना हुनर न बेच सुख़न-वर की बात कर यकता हो बे-मिसाल हो लाखों में एक हो ऐसे ही किसी मर्द-ए-दिलावर की बात कर किस मख़मसे में पड़ गया 'आज़म' तू आज-कल वहम-ओ-गुमाँ को छोड़ हुनर-वर की बात कर