क़िस्मत से लड़ती हैं निगाहें तेरे होते किस को चाहें उल्टी देखें इश्क़ की राहें हँसना पड़े जब रोना चाहें इशरत-ए-माज़ी को रोता हूँ ग़म के गले में डाल के बाहें नाज़ुक नाज़ुक जज़्बे दिल के हल्की हल्की ठंडी आहें शीशा-ए-दिल के हर टुकड़े में एक इक सूरत किस को चाहें मेरे मुक़द्दर के सर-नामे जलते आँसू ठंडी आहें दुखते हुए दिल की रग रग में तुम चुटकी लो हम न कराहें हाए तिरे पाबंद-ए-मोहब्बत क़ैदी आँसू मुजरिम आहें एक इक साँस जवाब-तलब है कैसे नाले कैसी आहें क्या न गुज़रती होगी दिल पर रो न सकें जब रोना चाहें सुर्ख़ आँखें हैं भरे हैं आँसू किस से 'सिराज' लड़ी हैं निगाहें