किताब-ए-ज़ीस्त का उनवाँ बदल जाता तो अच्छा था दिल-ए-वहशी किसी सूरत बहल जाता तो अच्छा था असीर-ए-तीरा-बख़्ती हूँ कभी दोश-ए-तमन्ना पर किसी का काकुल-ए-मुश्कीं मचल जाता तो अच्छा था कड़कती बिजलियों की ज़द पे बैठा सोचता हूँ मैं नशेमन आतिश-ए-गुल ही से जल जाता तो अच्छा था