कोई बतलाओ कि ये नाव कहाँ ठहरेगी कब क़ज़ा आएगी कब उम्र-ए-रवाँ ठहरेगी ज़िंदगी एक हक़ीक़त सही लेकिन ऐ दोस्त गर यही हाल रहा वहम-ओ-गुमाँ ठहरेगी सू-ए-जौलाँ-गह-ए-हस्ती निगराँ है देखो ये नज़र अब रुख़-ए-साक़ी पे कहाँ ठहरेगी है बहुत सादा ग़म-ए-दिल का फ़साना उस पर बार पेचीदगी-ए-शरह-ओ-बयाँ ठहरेगी शहर-ए-दर्द एक नया होगा वहाँ पर आबाद मेरी आवाज़ सर-ए-दश्त जहाँ ठहरेगी दोस्तो मौत से अपनी ये मिसाली पैकार बाइस-ए-रश्क-ए-मसीहा-नफ़साँ ठहरेगी जिस से हक़-गोई की ज़िंदा है रिवायत ऐ दोस्त आज ता'ज़ीर के क़ाबिल वो ज़बाँ ठहरेगी सर-गराँ आज हैं 'जाबिर' से सुख़न के नक़्क़ाद कल को मेआ'र-ए-ग़ज़ल उस की फ़ुग़ाँ ठहरेगी