कितना अजीब-तर है ये रब्त-ए-ज़िंदगानी हस्ती तमाम शोला आलम तमाम पानी जल्वे यही रहेंगे नज़रें यही रहेंगी बाक़ी है और रहेगा ये इर्तिबात-ए-फ़ानी है इक ज़बान-ए-उल्फ़त हर पैकर-ए-मोहब्बत आँसू भी तर्जुमानी गेसू भी तर्जुमानी इक लम्हा-ए-तबस्सुम वो लम्हा-ए-नज़र है जिस पर कोई लुटा दे इक उम्र-ए-जावेदानी फूलों को तौलना है काँटों से खेलना है दिल की नज़ाकतों में उन की मिज़ाज-दानी ग़म ज़िंदगी है लेकिन शायर 'नुशूर' तेरा नग़्मों से खेलता है जब तक है ज़िंदगानी